इल्म या अना


मृत्यु,यानी आपकी की जिदंगी का अंत, यानी आपकी जीवन श्रंखला का समापन, क्या यह अपने साथ एक राहत लाती है, हमे भारमुक्त करती है? या फिर मृत्यु हमें एक तरह से तारती है,हमारे पापों का, हमारे कुकर्मों का पश्चाताप है?
क्या जिंदगी सचमुच इतनी हसीन, इतनी खुशहाल और बेदाग है? मुझे तो लगा था की हमारा इस कलयुग में जीवित रहना शायद एक तरह का पश्चाताप ही है, हमारे पिछले जन्मों की गलतियों का नही बल्कि उन गलतियों का जो हम हर दिन दोहराते जाते है एक आदत की तरह, जीवनशैली की तरह,कुछ जान कर कुछ अनजाने पर क्या आप किसी हरकत से,किसी व्यवहार या किसी क्रिया से  अंजान होकर नित्य दोहरा सकते है क्या?
मनुष्य अपने भावनाओं को, अपनी खामियों को कभी स्वेच्छा नही स्वीकारता , वो चाहे मोहब्बत हो, रंजिश हो, पीड़ा हो, द्वेष हो, दुख हो, अपने परिजनों का लाड़ प्यार , अपनी जिंदगी या फिर मृत्यु हो।

हम अक्सर देर करदेते है।

हम देर करदेते है जिंदगी जीने में, उसे समझने मैं समय खो देते है और खो देते है खुद को और कुछ अपने हमदर्दों को।
हम देर करदेते है वह पहला कदम रखने में, हम देर करदेते उसे पुकारने में हम देर कर देते इजहार करने में।
हम देर कर देते है जिंदगी जीने में

फिर कोसते रहते है मृत्यु को, हमसे हमारी संधि चुराने के लिए, हमे धम से नीचे गिराने के लिए जब लग रहा हो की जिंदगी अपनी पराकाष्ठा पर है
तब उस क्षण भर के लिए हमे ज्ञात होता है की कितने  तुच्छ और महत्त्वहीन है हम इस विशाल,अनंत ब्रम्हांड में

जिंदगी हमे अना देती है तो मृत्यु हमें इल्म 
ये समाज की दायरें जो आपको सीमित कर रहे थे, मृत्यु आपको पंख देती है उड़ने और निकलने के लिए और जिंदगी फिर ला खड़ा करती है इस दुष्चक्र की शुरुआत पर

तो फिर क्या मृत्यु पीड़ा है या उस पीड़ा से हमे छुटकारा देने का जरिया
मृत्यु ना ही नायक है न ही खलनायक वह आपकी जिंदगी का एक एंटी हीरो है!
सोचिए जरा





Comments

  1. Chod do doctor giri sadhu maharaj ban jao scope zyada hai 🤣

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