सेंट से सीन।
सारा दिन बस यही काम करता हूं।
अजीब सा खुद से व्यवहार करता हूं,
काम तो बहुत है पर आराम करता हूं।
हसीं आती है खुद, कभी चुप चुप कर रोता हूं,
पता नही क्यों दूसरो मैं अपनी खुशियां खोजा करता हूं।
मेरे घर के बिस्तर पर बिछी वह चादर भी मुझ पे हस्ती है,
ऐसा भी क्या मैं बेकार काम रहा हूं,
तकिए से लिपट कर पूछता हूं ,
सेंट से सीन का इंतजार करता हूं।
अलमारी पे टांगे परदे भी मुझसे अब सवाल करते है,
क्या हुआ तेरे सपनो का? आओ उनकी तलाश करते है
पलंग के नीचे,फ्रिज के पीछे,
घर के कोने और छानी की जांच करते है।
क्यु समझ नही आता की तुम्हारे ही मस्तिष्क में वास करते है।
पर मैं तो बस सेंट से सीन का इंतजार करता हूं।
सुना है आसान नहीं है ख्वाहिशों को सच करना
अपनी इच्छा को हकीकत में बदलने की क्षमता रखता हूं।
संघर्ष तो पूर्ण है और जीतने का हौसला भी रखता हूं,
पर अफसोस, आखिर मैं तो नौजवान इंसान ही हूं,
खुद ही खुद को खुद ही मैं फसाता रहता हूं,
सेंट से सीन के इंतजार करता हूं।
wahh wahh
ReplyDelete🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🔥🔥🔥
ReplyDeletedavinder and Harsh bhai bahot bahot dhanyawad
ReplyDelete