खत
कभी समय हो तो हमारे भी खत पढ़ लेना
याद और समय दोनो निकल के लिखते है
पहले लिखने में समय चला जाता है
फिर कमबख्त जवाब के इंतजार में
मुस्कुरा रहा हूं मैं ये लिखते वक्त
मुस्कुराते तुम भी होगे पढ़ते पढ़ते,
जानता हूं की लिखने वाले होंगे हजार,
पर मैं उन हजारों मैं एक ही तो हूं।
यह में तो जानता ही हूं, तुम क्यों नही समझते हो।
शायरों सा मिजाज़ तो नही, पर तुम शायरी से लगते हो
दिमाग लगा रहता है मतलब ढूंढे मैं,
उसे कहां है मालूम की तुम दिल में बसते हो।
मीलों.... चल के मैं आ रहा हूं, कुछ कदम आप भी बढ़ाइए
अकेले गाने मैं आनंद कहां , कहीं कहीं सूर आप भी मिलाइए।
हमारे लिए तो आप चांद हो, कमस्कम एक तारा तो बंजाइए।
अंधेर सी हमारी दुनिया में कुछ रोशनी तो लाइए
यही सब तो लिखा था उन 142 खातों मैं,
जिन्हे तुम्हारी आंखें नसीब नही।
इसलिए 143 वा खत फिर से वही लिख रहा हूं
मुश्किल होता है उसी लगाव से लिखते रहना, पर फिर दोहराऊंगा,
कभी समय हो तो हमारे भी खत पढ़ लेना!
Kaafi behetarin �� please explain the significance of 143����
ReplyDeleteaab aap intne samjhdaar toh ho hi!
DeleteWaah waah💕
ReplyDeleteOffo itna deeep💋💋💋❤
ReplyDeletethank you Arushi
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