ट्रेन


गाड़ी बहुत तेज़ी से चल रही थी
बालों और आंखों के बीच नोक झोंक चल रही थी
गर्दन टेढ़ी कर, खिड़की के किनारे टीका दिया 
और ट्रेन की सफर आरंभ करदी थी।
नजरे बाहर गड़ी हुई है पुतले की तरह
बगल मैं कौन बैठा है, कहां ध्यान रहता है,
जब तक वह सहयात्री अपना सा नही लगता है।
स्टेशन आया गाड़ी रोकी और धक्के से सिर हटता है
नजरे फिर उनसे मिलती है जो सामने की सीट पर बैठा है 
जुल्फे उनके भी लहरा रही थे,होटों से मिलने जा रही थी
धीरे से एक उंगली आती है उन दोनो को चुप कर जाती है 
फिर धीरे से बिंदी को दबाती है।
 मेरी आंखें तो न जाने कैद है, बिलकुल नजर नहीं हटती है
जतन करता हटाने को पर मेरी एक नही चलती है
पहली दफा हुआ है ऐसा जादू है या कोई फरेब है
उसकी आंखों ने मुझे अचानक, रंगे हाथ पकड़ लिया,
सिर छुपाने की जगह नहीं ट्रेन में जो बैठे है।
मुस्कुरा कर उसने नजरंदाज किया की कोई बात नही
कैसे बताए की कुछ क्षण आत्म देह में नही थी
ध्यान गया उस कुर्ती पर जो उस पर जच कर बैठी थी,
फिर जाता हूं नयन मिलने, मानो जैसे ढीट हूं
क्या करू मैं मंत्रमुघ हूं बिलकुल ही मजबूर हूं।
उसकी खुश्बू इतनी मोहक ईर्ष्या है मुझे उस इत्र से
करने जो मिलता उसको बखान अपनी मित्रता का उस खूबसूरत चित्र से
जो छप चुकी है मन में मेरे जैसे मेरा पीर है।
फिर एक बार ट्रेन रुकती है जालिम दुश्मन जैसे
उठ चली वोह अपनी खुश्बू छोड़कर जैसे उड़ती तितली है
पता नही था मुझे की एक घंटे पहले ही उतरना था
फिर हताश होकर बाहर देखने लगता हूं मानो जैसे की सब सपना था!




Comments

  1. Bahut khoob likhe ho dr sahab ❣️🤗

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  2. Always obsessed with your hair🙄 and you always complain baithne ki bhi jagah nahi milti tuje 😂 but very well written 👍

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  3. Ak ghante phle utrna tha😂
    Nice

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  4. This was beautiful depicted. God bless❤️

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  5. Hmare wali mein na koi zulf lehraati h, aur na hi koi aankh pakadti h

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    1. ye kahani kalpanik hai iska satya ghatnao se koi vaasta nahi hai

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