याद


कभी खुदसे हमे याद करने की भूल तो करो
घुफ्तगु करने की थोड़ी सी जुर्रत तो करो
क्या हमने ही जिम्मा उठाया है लिखने का
शाम सुबह,कभी तो कलम चलाया करो

मानता हूं की तुम्हे काम है हजार, तो सौ हमारे भी है
में तो आनंद से गुहार लगाता हूं, इक्का दुक्का प्यार से तुम भी बुलाया करो
स्वार्थ तो हैं मेरा, मन जो लगा रहता है
बातों मैं भान कहा क्या सुबह और क्या अंधेरा है

खामोशी से यूं घात तो मत करो
मुक्कमल है मंजिल जरा बात किया करो
पता है मुझे की तुमने मेरा स्वार्थ देख लिया
दिल्लगी ही तो है कोई गुनाह तो नही किया है

क्या हाल है क्या चाल है बस करते यही सवाल है
फिर भी चीड़ जाओगे, कैसे मुश्किलात है
शुभचिंतक है बस हम और यही हमारा मिजाज है
मशगूल है सारी दुनिया इसमें, और एक हम अकेले बदनाम है

कभी खुद से याद करने की चाहत तो रखो
वारदात ए जिन्दगी में दिलचप्सी तो रखो
ऐसे तो मुफलिसी में कट रही है जिदंगी
इसे जानकर ऐशो आराम मैं जीने की हिदायत तो दिया करो।

गलती तुम्हारी उन आंखों की जिनके दीदार को हमारे अल्फाज तरसते है,
वरना न मैं लिखता तुझे न तू लिखती कभी
अपना जान कर लिखने की मजाल किए थे
 अब सोच लेंगे की है अंजान कोई




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