सवेरा


आज सोचा की अपनी राह बदल लू
आज सोचा की कुछ नया सा रांग लू
पर भावे उर को रंग वही
जिसमे रंगना न चाहे कोई

है मूर्ख कई जो दावे करे
पर खरे न हो पाते कभी
मुंताशीर होगा उनका गुरूर
जो झूठी हर वो सांस भरे

मुश्किल होता तय करने में
ऊपर वाला इन्हे तौफीक दे
या फिर इनके प्राण हरे

हरना है तो अंधकार हरो
अज्ञानता का यह ज्वार हरो
जीवन सबकी उतनी ही प्रिय है
तुम थोड़ा सम्मान करो

नही समझे तो पूछ लो थोड़ा
शर्मिंदगी हो तो पढ़ लो थोड़ा 
खैर तुम ठैरे व्यक्ति लड़ाकू
मूर्खता मैं करे सीना चौड़ा

घर छोड़कर डर छोड़कर
श्रम करे तन तोड़कर
उसका तुम उपहास उड़ाते 
लाज शर्म सब छोड़कर

त्याग दे अहंकार ये तेरा 
शिक्षिका मिलेगी वादा है मेरा 
कहीं देर न करदे नियति 
वह दिन न आजाए जमूरे
जब नसीब में न हो तेरे सवेरा

















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