ज्वार
कुछ शब्दों मैं बदल गई
पता नही जो दूरी थी कब
महसूस सी होने लग गई
है चांद भी तो मीलो दूर, उस समंदर से
परंतु ज्वार कभी न कम हुई
यह रात रहस्मयी है
मायावी है शीतल है
कहीं हुदया तुम्हारा भी,
उस निशा सा तो नही।
अंधकार है गलियों में, गांव सूना होगया
तुम्हारे मेरे बीच का संसार क्या इतने जल्दी सोगाया
हूं चांद मैं और तुम बादल हो
निकल जाते हो चतुराई मैं
हूं खड़ा मैं आज भी उस चौराह पर
जहां से गुजरने कि अब से सख्त मनाई है
मैं भी ठहरा भावनात्मक व्यक्ति
शायद मेरा ही कसूर है
कविता के लालच में आकर
उत्तेजना मैं धीर खो दिया,
बात का बतंगड़ बनाकर ,बैर मान कर सोगया
इतने व्याकुल भी न होना तुम
आत्मग्लानि मैं मत होना गुम
जीवन तुम्हारा है समंदर
भाव तुम्हारे है उसका जल
वो ठैरी, चांद तुम्हारी
ज्वार ही है मीत इसका एक मात्र अंत
Bov mast che💯 👏perfect for lunar eclipse
ReplyDeletethanks ayushi!
DeleteBahut sunder
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