चांद और बादल


जब शाम होती है में बादलों को देखता हूं
क्या वे भी अपने घर जा रहे है यह सोचता हूं
जब मैं समंदर के किनारे को देखूं
लगे की वह उसके पानी को पुकारे
जैसे ताउम्र उसकी यही एक चाहत थी
उस खाली दीवार पर टांगे आइने में अपना अक्स देखूं
लगे की थोड़ा सा हूं मैं बादल थोड़ा सा हूं किनारा
चाहतों में अपने लापता सा बेचारा
गोधूलि मैं गेरुआ रंगा अंबर मानो दे रहा हो दुहाई
जैसे निराशा मैं सारा दिन उसने है बिताई
रात होने पर वे पंछियों ने भी उसे बेगाना करदिया
जिसके साथ सुबह अटूट याराना था
दुश्मनी तो सिर्फ रात से है चांद से कहा़ है बैर
सब पूछे की चांद क्यों है बे ऐब 
 सबकी दोस्ती है या ये कैसा है फरेब 
क्यों, चांद का रिश्ता सबसे होता है
चुकीं चांद के पास सबका राज होता है
खुली रहती ही खिड़की , खर्च होती है स्याही
लगा देता हूं पर्दा काफी बटोर ली वाह वाही

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