कभी मुझसे
कैसा गुजरा दिन ये सवाल पूछो
थक के चूर हूं, सारा दिन
क्या किया तुमने आराम,पूछो
कभी कभी बातें कर
कभी कभी मिला कर
क्या तू वैसा ही है जैसा
में तुझे सोचता हूं
ए पर्दानशी उस परदे को हटा
अपने खूबसूरती को बयान कर
बेफिजूल इस चक्कर मैं पड़ा हूं
आंखें मूंदे बरसों से खडा हूं
कहीं ओझल न हो जाए तेरा अक्स
बस आंखें बंद कर,जीना सीख रहा हूं
कोई बात है जोह मन को खूरेद रहा है
धीरे धीरे भीतर से खोखला कर रहा है
या पता नही ये बेचैनी है मेरी
जो तुझमें अपना चैन खोज रहा है
मन में विचारों की अजीब से भीड़ रहती है
क्या विचार है अक्सर उस पर विचार करता हूं
बातों से भटका लगता हूं
अंधेर से कोने में अटका लगता हूं
यह साजिश है मेरी तुझे बताने की
तेरे ख्यालों का एक वृक्ष लगाया था
उसकी की नाजुक डाली से लटका रहता हूं
कभी तुम भी आंखे मूंद कर मेरे रास्ते आना
मेरे यादों का एक वृक्ष लगाना
बेपनाह पनाह होगी उस पेड़ की
जरा हमारा नाम लेकर एक बीज लगाना
Comments
Post a Comment