शून्य


कौन हूं मैं, क्या हूं मैं
कुछ हूं भी या, शून्य हूं मैं?
शून्य की कोई  संख्या नही 
शून्य की कोई वाख्य नही
जब कुछ नही तो क्या सही?
जो हूं मैं, वो सब कुछ मेरा है
कितना भी तू कहे कुछ नहीं
गर शून्य समझो तो शून्य सही
मेरी भी अहमियत समझिएगा कभी
गिनती में नौ के आगे बिन मेरे कुछ नही
मेरी क्षमता को न तोलो तुम
बिन मिले ही निर्णय लो न तुम
इस वक्त ने न जाने कितने बदले
क्या चीज हूं मैं और क्या हो तुम
घमंड बड़ा ही पापी है
कइयों की गर्दन नापी है
गिनती तुमको भी आती होगी
घट जाओगे धम्म से तुम
मेरी चिंता न मुझको सताए 
शून्य से भले कोई क्या ही घटाए



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