पर्वत


पहाड़ों को देख कर मैं स्तंभित  हूं
ये प्राचीन भव्य और बेमिसाल है 
कभी लगता है की महाबलशाली,
सहस्त्र गाजो की शक्ति रखने वाले दिव्य प्राणी है
कभी लगता है एक पत्थर का टुकड़ा 
एक अनोखी कहानी है 
आनंतकाल से एकटक खड़ा है
सच झूठ इतिहास वर्तमान सब देखा है
ईश्वर ने मानो जैसे बेड़ियों में बांधा है
इन चट्टानों पर लहराती घास,
शेर के आयल की तरह लगती है
ऊंचे खड़े वृक्ष उसके शोभा मैं खिलते है
कभी देख के लगता है की वह आगे बढ़ना चाहता है 
शतको से बैठा अब उठना चाहता है
कहीं जानता है वह की उसके हिलने से विध्वंश होगा
तभी तो चुप्पी ताने युगों से बैठा है 
कभी हाथ रखना उस चट्टान पर
धरती के धड़कनों का आभास होता है
दिव्य विशाल और अभिमानी जान पड़ता है
एक राजा के भाती वीर जान पड़ता है
है मामूली नही, काफी अहमियत रखता है
तभी तो श्रृष्टि रचैता हमेशा पर्वत पर वास करता है

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