हाल फिल्हाल


हाल फिल्हाल कुछ अलग लगने लगा हूं
रात के सन्नाटे को भी महसूस करने लगा हूं
वोह खाली अकेली सड़के
चुप चाप खड़े वो वृक्ष किनारे
और दूर शहर की ऊंची मिनारे
वो हवा का कहीं गुम हो जाना 
पक्षियों का थक कर घोसले में सो जाना
कमरे में रह कर यह सब देखने लगा हूं
हाल फिल्हाल कुछ अलग लगने लगा हूं

हल्का है शरीर पर मन भरी लगता है 
आँखो में है नींद मैं फिर भी जागता हूं
बेचैन सा मन न जाने क्या चाहता है
सबका है साथ पर अकेला हो जाता हूं 
तन्हाई मैं हर पल ये कैसा सुख पाता हूं
डरता हूं कहीं इसकी आदत न लगे
इसलिए सबसे रोज थोड़ा बात करता हूं
नम रहती है आंखे फिर भी मैं हस्ता हूं
दिल का हर एक वाक्य सचाई से कहता हूं
गर सोच मैं पड जाओ की में नाराज हूं किसी बात से
तो समझ लो मित्र ऐसा मैं अक्सर करता हूं
कभी दूसरों से तो कभी खुद से लड़ता हूं
हाल फिल्हाल कुछ अलग लगने लगा हूं
रात के सन्नाटे को भी महसूस करने लगा हूं



 

Comments

Popular Posts