बातें


बातें कर बातें कर मेरे हमराही
बातों मैं चाहत है चाहत की स्याही
सिलवटे जो खामोशी की है दर्मियां
बातों से इनको सुलझाओ मियां

होटों पे क्यों साधे हो चुप्पी
आंखों में देखूं तो बातें है कितनी
इन बातों की होती कुछ पल की जिदंगी 
चुप रह कर करते हत्या हो इनकी
दुष्कर नही है कह दो ना मनकी

बातों मैं प्यार है बातों मैं तकरार है
बातों मैं बस्ती है दुनियां एक छोटी
जिसमे रहती है  कुछ सच्ची कुछ खोटी
हम भी तो है उन बातों के भाती
कुछ अच्छे,कुछ बुरे और कुछ मानी नही जाती

कभी सोचा है तुमने गर हम बोल नही पाते
न होता इजहार न होता इनकार
न होती वोह झूठी वादों वाली बातें
न मांग पाते तुम माफी,
न ऑर्डर कर पाते चाय कॉफी
है सलामत ये जिभ्या अब से मीठी रखना वाणी
वक्त निकाल कर कभी मिलने आना
अभी ढेर सारी बातें करना है बाक़ी









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