हकीकत


तू हकीकत में मुक्कमल नही 
में सपनो में पा लूंगा तुझे
तुझे मिलना शायद लिखा है या नहीं
पर सपनो मैं मिल्लूंगा तुझे
जब सपना ही इतना हसीन हो जाए
तो हकीकत की क्या पड़ी है मुझे
वो मुस्कुराके खिल उठना तेरा
दिवाली की आतिशबाजी सा लगे
अनगिनत पर्व होते है इस शहर में
तू सबसे पसंदीदा त्योहार लगे मुझे
उन गालों की लाली में डूबता सूरज
गोधूली मैं रंगे अंबर सा लगे
तू जब भी बोले मैं देखू तुझे
मीठी आवाज लगे अमृत सी मुझे
हर शायर की शायरी है तू
हर कवि की प्रेरणा है तू
तू है एक पाठशाला प्रेम की
उसी का विद्यार्थी मैं हूं
तेरा स्पर्श कोमल पावन है
में बरखा तो तू सावन है
तेरे दीदार को तरसे बरसो से हम
सोए नही है अरसे से हम
मुश्किलात बढ़ गए है अब भाई
तुमने ही तो नींद है चुराई
मिलते भी तो हो बस सपनो मैं
हकीकत से क्यों दुश्मनी है निभाई
फिर बंद करता हूं आंखें
की गले लगाओगे तुम आके
पर न नींद नसीब है न ये सपना मुझे
हकीकत में भी अब तुझे मिलना होगा
ताकि सपनो मैं फिर से मिलू तुझे

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