दर्द


एक मर्तबा मैने दर्द से पूछा 
तुझ जैसा क्या है कोई दूजा
सुख समृद्धि आती जाती
हर वक्त तुझे मेरे संग पाती
शायद तूही है वोह सत्य जिसे
पाया है सबने अदृश्य जिसे
पहले तू करता खाली मुझे 
फिर भिन भिन के भाव भरे
जब सबने सहा है दर्द कभी
फिर भी एक दूजे कि न फिक्र पड़ी
सबको बस समझे दर्द अपना
सहानुभूति मानो है एक सपना
मेरा,मुझे और में बस चाहूं
दुख तेरा ये में क्यों समझूं
वोह दर्द देकर करे बर्बाद मुझे
समझे कमजोर बेकार मुझे
मेरे शब्दों का है साथ सदा
की ये दर्द भी करे आबाद मुझे
जब ज्ञात हो जाए ये सत्य तुम्हे
और आखों से तेरे अश्रु बहे
ये जान लेना की अब भी देर नहीं
हौसला रख सब होगा सही






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