बरसात
आज फिर किसी का दिल टूटा है
अचानक ही नही बरसता है ये बदल
किसी के आसुओं का बांध आज फिर टूटा है
ये गरजता हुआ बदल किसी दिल की तकरार है
धरती का भी उस अंबर से इश्क है
तभी तो बरस के बुझाता उसकी तिश्न है
ये ठंडी हवा जो शीतल लगे
करती तबाह जब तूफान बने
ये बिजली का कड़कना
ये आंखों का फड़कना
क्या कोई अनहोनी की दसकतक है
या विचारो की रंजिश है
देवलोक में भी टूटता है दिल
और मैं समझा की आसन है मंजिल
मंजिल को पाना है, पर दूर तक जाना है
इतनी दूरी तो तय कर ली है
न जाने अब लेना और कितनो का सहारा है
अब भी जारी है बादल का बरसना
अब भी जारी है बिजली का कड़कना
ये दुख अब कायम सा होगया है
जिसका सहारा था अब वोह भी खो गया है
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