सफलता
क्यों बदलता है मौसम
क्यों होती बरसात
दिन प्रतिदिन एक नया दिन आता है
एक नई रात आती है
एक नई याद लाती है
यादों की बातों मैं दिन निकल जाते है
अनगिनत कार्य है, सब धरे रह जाते है
नीरस सा होगया है जीवन
बस घसते चले जाते है
आयु बढ़ रही है
और दिन घटते चले जाते है
ठैराव अब लाना है
जिंदगी को बढ़ाना है
ख्वाबों से निकल कर
धरती पर आना है
मेरी कमान है हाथों मैं मेरे
आत्मसंदेह,फिर मुझे क्यों घेरे
उस सूर्य सा मुझे भी, अब जलना होगा
थोड़ा सा ढलना, थोड़ा पिघलना होगा
मुक्त करना होगा हर बंधन से खुद को
न जाने कितने दिन,
कितनी राते जगना होगा
सूर्य भी मैं हूं, चांद भी मैं हूं
जो सच करे हर सपना
वह इंसान भी मैं हूं
सूर्य वही उदया होता है
जो हर शाम है ढलता
तुम बस कदम आगे बढ़ाना
चुकी गति से मति मिलती है
और मति से सफलता
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