शह और मात


जी रहा अतीत में
कर रहा व्यतीत मैं
नष्ट कर वर्तमान को
बन रहा हूं ढीठ मैं
रीत है ये प्रीत की
न हर की न जीत की
नमन करे हर श्रोता
नज़्म सुने जो मीत की
मुश्किल नहीं आसन है
मामूली सा ज्ञान है
समक्ष तेरे है ले उठा
अवसर न इस से कोई बड़ा
भव्य है तेरी प्रतिमा
चट्टान सा फिर तू खड़ा
तू कर नमन हर एक को
निरंतर संग तेरे जो लड़ा
मत भूलना उस बात को
परोसने वाले उस हाथ को
है छाव जिसकी सर तेरे
उस पिता के तू चरण धरे
गुरु तेरे है संग तेरे
कहते क्यों अब तू डरे
जिंदगी शतरंज है
ये बाजी शह और मात की






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