सुराख


तुम समझते हो मैं मजबूर हूं
अपने ही दिल से दूर हूं
मुशक्कत बढ़ी है, मैं महरूम हूं
मेरा दिल तो वो ले गई है
सीने मैं अब बस सुराख है 
न तेरा दिल तेरे पास है
न मेरा दिल मेरे पास है
जख्मों का भरना लिखा होता है 
वक्त पे मिलना लिखा होता है
कमबख्त, मेरे नसीब मैं तंगी हमेशा
न बोतल मैं स्याही और वक्त भी थमा होता है
गम नही इन बातों का
बस थोड़ा मुस्कुरा देता हूं
जलने वाले राख हो जाते 
उन्हें गंगा मैं बहा देता हूं
आजमाना बंद कीजिए मुझे
में आपके दर्द का भी पता रखता हूं
जाना नही चाहता हूं उस राह पर
इसलिए इन मसलों से दूर रहता हूं
तो समझ लेना मुझे मजबूर
मैं एतराज नहीं जताऊंगा
पर तुम भी उस सुराख से देखना 
मजबूरी की वजह खुद जान जाओगी








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