लहू


जो लहू देखा मैने
वो आंखों से बहाया है
जो लहू बहा है अंग से
वो मिट्टी में मिलाया है
उस मिट्टी का तिलक लगाकर
आजादी हमने पाई है
ये क्रोध जो सीने मैं सैलाब ला रहा है
देश भर मैं यह इंकलाब ला रहा है
ये जितना भी हमे रौंदना चाहे
शोषण अधिकारों का करे
भय को बनाकर ये हथियार
करे अभिमान पर हमारे वार
कलम करेंगे इनका गुरूर
चाहे मिट जाए अपना वजूद
है अमर विचार मेरे,
अमर है मेरी गाथा
कुछ निर्लाजो के समझ न आता
जो आजादी का करते उपहास 
मृत्यु के भय का नही उनको आभास
हमारा हर एक श्वास है कर्जदार उनका
आजादी के इस पुष्प को
लहू से अपने जिन्होंने सींचा
में नमन करू उन वीर पुत्रों को
शहीद जवानों देशभक्त को
इंकलाब जिंदाबाद

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