नफरत
क्या है वह अंधकार?
वह दुर्भावना क्या है?
ये परजीवी है जो खोखला करे
तुम से तुम को छीने
और अहम भरे!
उस अहम का है अनोखा भ्रम
खुदको तू स्वयं भस्म करे
नफरत ने कई सपने है कुचले
विद्वंश किया अभिमान
खुशियां है लूटी
ये है उस कैंसर की गांठ की भाती
जिसकी तशखीस कभी न हो पाती
उस अज्ञात को जब ज्ञात हो जाए
अनिद्रा मैं खुद को अपनी शैय्या पर पाए
इस अंधकार को प्रकाशित करना
सद्भावना से इसे उज्ज्वलित करना
ये विष जो तुम खुद पीते हो
पुराने अघात मैं क्यों पल पल जीते हो
दूसरो के दुःख का सुख न मनाओ
कलयुग में खुशियां बस क्षणभर ही टिकती है
माना की बिकती है बटुए में दिखती है
नफरत की लपटे,
इन खोकली इमारतों से लिपटी है
निशुल्क होता है मुस्कुराहटें बांटना
जो न मानो तो बच्ची शेष जिंदगी
पश्चाताप मैं ही काटना!
True👌👌
ReplyDeleteIndeed
Delete✅✅
ReplyDelete😇🤗
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