दिसंबर


इन सर्दियों के दिनों की कुछ अलग बात है
ऐसा लगा मानो समय ठंड से जम गया है
सर्वत्र एक अनोखी सी शांति है
मानो जैसे ये ठंडी सब जानती है

जाड़े का दोपहर बड़ा प्यारा होता है
माँ के आंचल सा मुलायम होता है
एक बेपरवाह सी हवा चलती है
जो परेशानियों को छू कर देती है

सूरज भी जैसे शांत हो गया है
शीतलता में मय उसका तेज हो गया है 
न घमौरियां है न जुलस्ती गर्मी
न उठना है बिस्तर से,न नहाने की मर्जी

हो सकता है ये साल भर की पीड़ा का उपहार है
दिसंबर को मानो सब से प्यार है
कई यादों को ताजा कर जाता है
कुछ पुराने दर्द भी वापस लता है 

बाहों में भर लेता है हमें ऐसे
जैसे 11 महीनों से इंतजार कर रहा है
ये कैसा इश्क है दिसंबर का
जो सभी के हिस्से में आ रहा है




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