एक ऐसी मुलाकात


मुस्कुरा नही पता हूं खुलकर 
तुमसे मिलने पर आजकल
बिछड़ने के गम का डर बना रहता है 
जो गले लगाया यूं तुम ने
पिघल गया हूं मोम की तरह
किस कदर तेरे दिल ने
मेरे दिल मैं आग लगाई है
लाखों जल गए देख कर हमे
जो मिलने लगे थे हम अक्सर
जब तू चली जाती है छोड़कर
लगता है इन्होंने ही नज़र लगाई है
उतार दू मैं ये नज़र
तेरे माथे को चूमकर
बस दिक्कत इस बात की है
तेरे होंठ न बुरा मान जाए
मेरे होंठों से दूर हो कर
तेरे इतर की खुश्बू अब भी ताजी है
मेरे बाहों में,मेरे ज़ेहन में
और चादर की सिलवटों में
तेरा होना मदहोश कर देता
और न होना बेहोश 
होश कहां से लाऊं अब मैं
जो मिला तेरी आगोश में
तेरा होना एक संगीत है
न होना एक कविता 
में तो केवल स्याही हूं
जो तेरी धुन पर है चलता
एक दिन जरूर खुलकर मुस्कुराएंगे
जब थमा होगा वक्त और
तारे धरती पर आयेंगे


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