निराश
आज मैं हताश हूं
लड़ रहा हूं मैं अकेले
अपनो से ही परास्त हूं
तीज नही त्योहार नही
मनुष्य जैसा व्यवहार नही
क्या यह सोचकर उठाए ते कदम
जब शपथ हिप्पोक्रेट की ली
भाई तुमहरी ऐश है
छापना अब कैश है
जब मुंह से इतना बोलते
कमबख्त आंख क्यों न खोलते
हकीकत से तुम मिलो दूर हो
अपने ऐश मैं मशगूल हो
संकट मैं जब हो तुम्हारी जान
बस तब करोगे हमारा ध्यान
वोह दीन वाली आंखें, फरेबी
मतलब की दुनिया बस इतना जान
भगवान बनाते पल भर में
पल भर मैं खुद बनते हैवान
न सोच विचार न इंसानियत
कहा छिपी थी ये हैवानियत
हम आज भी लगे है जी जान से
सेवा करने उस हर एक जान की
जो हो सकता है उठकर
कल हमारी जान ले
पर अभिमान है हमे हमारे पेशे पर
तुम्हे रत्ती भर ज्ञान नही हमारे काम की
भले मैं निराश हूं,भले मैं हताश हूं
मैं हूं एक डॉक्टर,मैं नही भगवान हूं
न है हमे उम्मीद,न अपेक्षा किसी से
हक है हमारा,
और मैं अकेले ही लड़ने को तैयार हूं
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