दो प्रेमी


आज चलते चलते दो प्रेमी देखे
होंठ खुदबखुद मुस्कुराने लगे
और नजरे उन्ही को देखती रहे
लंबा कद, मध्यम निर्माण तन
घूंगरालू बाल और प्यारी सी चाल
मानो जैसे वो एक दूसरे के पूरक थे
कई देर तक वे मेरे आगे चलते रहे
और मैं अपने ख्यालों में पीछे चलता रहा
सब के साथ होकर भी 
अकेला महसूस कर रहा था
क्या ये ईर्ष्या थी 
या किसी के होने की चाह
वो प्यार से अपना कंधा
उसके बाजुओं पर रखती थी
फिर किसी बात पर ठहाके लगती
और एक मीठा सा थप्पड़ 
उसके गालों पर जड़ती
जानी पहचानी सी यह प्रीत
मानो जैसे मेरे आंखों के लिए संगीत
वो कहती जाती 
मैं बस आंखों से सुनता
वोह बस बोलते रहे 
इसलिए हां में हां भरता
एक बहुत ही विचित्र आभास हो रहा था
मानो जैसे मेरे ही समक्ष 
मेरा अतीत वर्तमान हो रहा था
कुछ अपना सा था 
कुछ सपना सा था
जो भी था उन दोनो के बीच
कुछ मेरी हकीकत थी
और कुछ उनका सपना था


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