तेरा ज़िक्र


तेरा ज़िक्र मेरा मन खुद ही कर लेता है
मुझे एक भनक तक नहीं लगती
मेरा दिल कुछ पल के लिए छू हो जाता है
मुझे एक भनक तक नहीं लगती
अपरिमित है जब तेरे अक्स का ही तेज
नेत्रहीन न हो जाऊं गर मिल जाए किसी रोज
एक चेहरा जिस से में रूबरू नही
गुलदाऊदी से कोमल जिसकी त्वचा
हो सकता है तू अवतार है विष्णु का
हो सकता है तेरा नाम मोहिनी तो नही
तेरे कदमों मैं न जाने कितनो ने 
दिल सजा रखा है
मेरा दिल जब छू हो जाता है
लगता है तेरे ही पास हाजरी लगाने आता है
तेरे आंखों को जो मैं देखूं गौर से
लगे की किसी महासागर समान
इतनी तीखी नजरे तौबा
जिंदा बचो तो दूंगा इनाम
तेरे मुस्कान को देख कर मैं सब भूल जाता हूं
मेरे आंखों का टाका तेरे होठों से भिड़ता हूं
जहा होना चाहिए था तेरे होठों को आज
उन होठों पर केवल अब नज्मों का राज
थोड़ी ईर्ष्या है तेरे जुल्फों से मुझे
जो इतनी इनायत से तेरे कांधे पर सजे
और कभी मुझे जलाने को 
तेरे पीठ पर उंगलियां फेरे
मैं होटों से मुस्कुरा रहा था
अब आखों से हूं मुस्कुराता 
तेरा ज़िक्र मेरा मन अब भी खुद कर लेता है
और मैं एकाएक तेरी आंखों मैं डूब जाता




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