समाज


तेजाब है,जो ये हिजाब है
सबने है डाला समाज में
न विचार है, न खयाल है
समाज का बस ध्यान है
है समाज कौन, क्या इसका हिसाब है
जो गिने तू अपने ही कदम
क्यों भय तुझे, दौड़ने की बात से
जब हिस्सा है तू
तेरा भी योगदान है
तो क्यों तू देता कान इन्हे
जिसका सुनना बस एक काम है
तू बोले एक ,वो सौ कहे
है इरादे तेरे नेक पर
ईमान उनका फेक है
सुनने कहने का धंधा जिसका 
तो ख़ाक वो समाज है
समाज का हिसाब ये
फूले और लोकमान्य है
ये सब जो रेंगते यहां पर
सारे तीलचट्टे के समान है
व्यर्थ का गुमान है
जब किसी के न तुम काम के
किया है तुमने भी ये काम
तो क्या ख़ाक तू समाज है

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