दरिया
जो अब बहुत खारा होगया है
कई यादें इसमें डूब गई है
कई इच्छाओं ने दम तोड़ा है
डूबते को तिनके का सहारा होता है
पर जब तिनका ही ले डूबे
तब दरिया भी रोता है
जो बूंदे छलकती है किनारे पर
जो मिट्टी में घुल जाती है बाहर आने पर
ये उस दरिए के आसू ही तो है
जो तेरे पैरो को छू जाता है
और जिसका तुम लुफ्त उठाते हो
वोह आसू तो है उस दरिए के
जिसमे ज्वार तुम लाते हो
चाहतों का दरिया
कभी सूखता नही है
चाहतें जो कभी खत्म होती कहां है
कई आते है गोते लगाते है
अपने चाहतों का बोझ
यही छोड़ जाते है
मन की लालसा आंखों पर आती है
जब तुम अपने ही चाहतों मैं डूब जाओ
और अचानक सांसे बंद हो जाती है
😢
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