अजनबी
एक अजनबी की अक्सर
न जानता हूं जिसे
न हुआ हूं रूबरू कभी
पागल, सा मन है मेरा
उसके पढ़ने की उम्मीद से लिखता हूं
जब की नियती देखिए
उसे न मेरा पता हैं
न मेरी लिखाई का
तेरी याद साथ एक खुश्बू लाती है
जो बारिश की मिट्टी की भाती है
तेरे स्पर्श से समंदर में लहरे उठने लगती है
रोंगटे भी आभास कर लेते मेरे इस एहसास का
जब कहीं गलती से आंखें मिल जाए तो
दिल थम जाता है,सांसे रुक जाती हैं,
उफ्फ मेरे इस हवामहल मैं
तेरी ही खुशबू बिखरती है
न पता मुझे तू कौन है
न पता तुझे मैं कौन हूं
बस पता यही की,हसीन है यादें
जिनकी आधार मेरी कल्पना है
क्या पता तू अतीत है
या मेरा भविष्य
पर वर्तमान में तू हैं अजनबी
मिलना जिस से है लाजमी
अचानक याद आ जाती है
एक अजनबी की अक्सर
और यादें ही बन कर रह जाती है
Aaye Haaye❤❤❤
ReplyDelete🤭🤭❤️
DeleteAjnabi ko hi yaad krte ho ya humein bhi kbhi kbhaar 🙊
ReplyDeleteaap toh azzez dost ho sir, aap se kya chipa hai
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