झूठ
न जाने कब झूठ सच्चा लगने लगा
क्या इतना हसीन होता है झूठ
की अब सच मानो मन से उतरने लगा
इल्म नहीं था मुझे इस बात का
जो पल मैं जी रहा था
वो एक ख्वाब था
किस बात का तुझे ऐब था
जब वो हर लम्हा तेरा फरेब था
मुझे न कोई शिकायत है अभी
न तुझ से न मुझ से
न उस से जो अपना था न कभी
शिकायत तो बस उन सितारों से है
उन हर एक टूटते तारों से
जिन्होंने दिलाया वो झूठा दिलासा
जो खुद टूटा है अपनो से बिछडा है
अधूरे जिसके अपने ख्वाब थे
उसके सहारे तुमने ख्वाब देखा
ये झूठ नही तो क्या कहीं का सच है
हम दोनो उस तारे की तरह है
एक टूटे हुए वादे की तरह है
तेरा झूठ ही मेरा सच था
मैं जलता हुआ पानी
तू पारे की तरह है
झूठ के चिंगारी में,मैं जलता चला गया
बस तू पारे की तरह उभरता चला गया
ये वक्त न जाने कब बदल गाया
झूठ अब एक मात्र सच बन गया
Amit yaar dil jeet liya yaar kya likha hai 👏😍❣️
ReplyDeleteThank you yaar! bas dil hi toh jitna hai ❤️❤️🤗
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