ओ खुशी तुम हो कहां?


ओ खुशी तुम हो कहां?
बाहें खोले मैं खड़ा यहां
कई सालों से जिसे खोज रहा
गांव शहर मैं भटक रहा
तू यथार्थ है या है मेरी मनोदशा
कोई तो छोड़ जाए मेरी झोली में तेरा पता

बचपन में तुझे खिलौनों में खोजा
फिर यारों के अड्डों पर
बदल रहा मैं समय समय पर
पर बदल न पाई मेरी खोज

एक आस है मन में
एक लालसा है
पाना तुझे एक ख्वाब सा है
क्यों लगता, जैसे आता है तेरा दर
बदल लेता है तू अपना घर

स्कूल खतम की , तो कॉलेज मैं खोजा
डॉक्टर बने तो डिग्री मैं खोजा
लगा की हां बस यहीं है मंजिल
पर आज भी तेरी राह,
 देख रहा यह मुंतजिर

ऐसा नहीं की सब यूहीं मिला है
श्रम और त्याग दोनो से मिला है
सोचा की बस ,अब यहीं है आखरी पड़ाव
बस अब होगी मेरे सिर खुशी की छाव
पर फिर होते मेरे ख्वाब मुंताशीर
गर्दिशों में, मैं फिर गया गिर
क्यों मेरी खुशी मेरी मुट्ठी में नही
मेरे इश्क में, मेरी सफलता मे नही

ये खालीपन का दीमक जो
बड़ा विचलित करता मेरे मन को
क्यों मन में अभाव सा रहता है
क्यों इन उपलब्धियों के बाद भी रिक्त सा लगता है
किस बात की अब पुष्टि चाहिए
जो मन खुशी की लिए अब भी तरसता है

कल जो शायद दूर का सपना था
आज हाथों में हकीकत की लकीर है
में सोचा शायद अब मैं खुश हूं
पर फिर भी कुछ कमी तो जरूर है

क्या ये कमी कायम रहेगी
जब कल मैं, आज के सपनों को 
हकीकत में रंगूंगा
तो फिर क्या खुशी एक भद्दा मजाक है
जिसपर न तुम हसोगे और न मैं हसूंगा

जब हाथों में हाथ नही था
तब साथ को तरसे थे
जब सुनने को कोई नहीं था
तब हर बात को तरसे थे
आज जब हाथों में हाथ होकर भी
किसी और की आस रखते हो
तो क्या खुश तुम हो
और क्या खुश मैं

इस अनंत जीवन की अनंत गाथा है
खुशी को हाथो मैं किसी ने न थामा है
वह बाग के ताजे फूल की तरह है
जिसकी खुशबू मे सारा बाग रमा है
उसे पाने की आस में तोड़ना मत
वह रेत है हाथों में दबोचना मत

बाहें खोले मैं सदियों से खड़ा
ए खुशी तू है कहां!?

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