गहराईयां
वह सोना नही है
भावनाओं में बह कर
खुद को खोना नही है
तू भले ही धस रहा हो दलदल मैं
फिर कीचड़ में जाने को
वहां से निकलना नही है
ये मुख जब दिल से मेल न खाए
बेझिजक वायदा करते जाए
इस थल पर रहने का जब बल नही
तो तुम्हारे क्षण भर के मोह को
महत्त्वकांक्षा कहेंगे जीवन नही
खुद का बिगड़ा छोड़कर
दूसरों का बनाने जाओगे
उसे भी बिगाड़ कर
रोते हुए घर आओगे
जिसे घर कहते हो
वह घर नही था
वहां रूह नही, केवल तन था
रिश्तों की बुनियाद
अब तक समझे नही
क्यों सवार हो अपने सिर पर
रिश्तों में "हम" होता है
केवल "मैं" नही
अपने स्वार्थ और सपनो को
दूसरों के विश्वास को दफनाकर
नही बनाते
खोखले मंतव्य वाले
समंदर की गहराईयां नही नापते
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