तेरी बाहें


मुझे तू मुक्कमल सी लगी थी
पर मिली न कभी
तू अंग्रेजी की किताब 
मैं हिंदी का कवि
तेरे चर्चे सारे शहर में होते
पर निकलते थे चौखट से मेरी

तू फाइव स्टार की मंजिल है
मैं ढाबे का मुसाफिर
तफावत इतनी ही है हमारे दरम्यान
की मैं जिस खूबसूरती का मुरीद हूं
तुम्हारे हक वह खुशी नही

बदनसीब तो मैं भी हूं
हूं पास तेरे पर तेरा नही
नमाजे यह मै अदा कर रहा 
दुआएं हो रही तेरी कबूल

तेरा दीदार मैं अक्सर करूं
तेरी आवाज दिनभर में सुनूं
हवा में तेरी महक मिली है
हर सांस में मेरी शामिल है तू

यह सब तो तेरे बिना भी मेरा 
पर तेरे स्पर्श बिना ,मैं अब भी अधूरा 
तेरा छूना मुझे, मेरा आभास कराता है
तेरा स्पर्श तिलिस्मी,मुझे तेरा कर जाता है

मैं अछूत जिसकी न काया कोई
अपना जिसे न कह पाया कोई
छू कर तूने मुझपर एहसान किया
असभ्य बंजारे को सभ्य इंसान किया

पर छूट गया यह साथ तेरा
अब थामेगा कौन हाथ मेरा
इस लालसा की तृप्ति अब कौन करे
इस शून्यता में रंग कौन भरे

जब तूने मुझे यूं गले लगाया
इस खंडार से मन में दीप जलाया
बरसों से जिसकी आस थी
मिटती दिख रही जो प्यास थी
इस नदी पर, वियोग का बांध बनाया
क्यों फिर से मुझे अछूत बनाया

मैं दानवीर वह कर्ण भले हूं
कुंती का पहला पुत्र भले हूं
क्यों पुनः सूत पुत्र बनाया
जो हो सकता था अपना उसे
तूने केवल क्यों तेरा बनाया

आलिंगन वही जो घाव भरे
दो जिस्मों को एक जान करे
मैं तेरा, तुझमें रमना चाहूं
बस बाहों में तेरे ढलना चाहूं

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