लहरें
उतना ही उतराता हूं
तेरे इश्क का समंदर है
न जानू मैं पैरना
पर तैरा चाला जाता हूं
सागरतट पर बैठा हूं
लहरों से बतियाता हूं
बात करती है लहरे भी
बस सुनने वाला चाहिए
कई आए तैराक
कोई डूबने वाला चाहिए
मुट्ठी में भरी रेत
पानी मैं बह जाती है
शायद कुछ यादें है
जो आखों को भिगाती है
एक सीख छिपी थी रेत में
समझा मैं थोड़ी देर से
मेरी मुट्ठी में मेरा विचलित मन था
कुछ यादें, परेशानियां
सवालों का स्तम्भ था
जवाब बहुत ही सरल था
मेरी सारी कठिनाइयों का हल था
वह बंद मुट्ठी जिसे, मैं हिम्मत समझा था
मेरे बीते हुए कल का फल था
जिसका पेड़ से गिरना ही, पेड़ का हित था
जब उसे खोला तो, उसमे मेरा दिल था
जो थोड़ा अधूरा था, मगर कामिल था
मुट्ठी के खुलते ही झक्म भर गया
अब लहरों मैं ही मेरा
एक प्यारा सा घर बन गया
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