आदत
मुझे ले डूबी है
मेरे सिर पर है हावी
इस ताले की नही चाबी
है धुंधला सब दिखता
जितना भी मैं लिखता
जैसे हाथो में नही ताकत
अब कुछ भी नही टिकता
मेरा खुद पर न जोर
मैं अपने किस्मत का चीर
जैसे मिटा रहा लकीरों को
न अपना रहा सही तरीकों को
जो मैं सोचता,खरोचता हूं
सिर को अपने नोचता हूं
जा रहा हूं उस गली मैं
जिस दिशा का कभी न सोचा था
वो सपने, वो बाते
वो बुलंद इरादे
वो जीतने की कोशिश
खुद से किए थे जो वादे
ये आदत, बिगाड़े
मेरा अस्तित्व ये चुराए
मुझे अपनो से दूर कर
मेरी छवि को बिगाड़े
ये आदतें बुरी है
मुझे ले डूबी है
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