माचिस


खबर-ए-तहय्युर-ए-ईश्क सुनो
अहद-ए-हाज़िर मुक्कमल नही 
एक ऐसे नए इश्क को सुनो
है माचिस की डब्बी और तीली का प्यार
तीली की नियती बस होना है राख

ये शमा जिसमे मैं जल रहा हूं
ये समा जिसमे मैं ढल रहा हूं
अभी आया नही है वह दिन 
जिसका मैं मुताजिर डर रहा हूं

जिंदगी में है मुहीब सन्नाटा
जो हर एक लम्हा,मैं घबराता
किसी बात से अनजान नही 
सहारे के सहारे यू चल रहा हूं
दिखता नहीं इसका अंजाम कहीं

मैं मामूली सी माचिस हूं
तू उज्वल सा दीपक है
रोशन कर तुझको
मैं खाक हो जता हूं

हम दोनो वैसे 
एक दूजे के मौहताज है
मैं जलकर जो तुझे रोशन करता
तू मेरी लव लेकर जग रोशन करती

दीपक का जो तेल प्रिय
वोह मेरा ही है स्नेह प्रिय
ये कैसे वियोग की है कविता
जिसका आरंभ ही नहीं हुआ रिश्ता
बिना बात ही मचल जाता हूं
मैं वह तीली हूं माचिस का 
जोह बिना कुछ जलाए ही जल जाता हूं

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