किताबों का सत्य
मेरी बचपन से कभी
किताबे पढ़ने में रुचि न थी
कई कारण है उसके,पर
एक पहला कारण है
एक आखरी कारण है
और एक मैं हूं जो इन कारणों के पीछे
छिप कर अभी भी
कोई उपन्यास नही पढ़ पाया।
सुना है किताबे आप को दूर देश ले जाती है
एक दुनिया जो पहले ही रची हुई है
उसमे आप अपनी कल्पना के रंग भरते हो
जो है, वह हमने देखा तो नही है
पर जो पढ़ा है लगता है वही सत्य है
यह आपका सत्य है
हो सकता है यह दुनिया के लिए झूठ हो
और वास्तविकता में आपके सच की
कोई पूर्ति करने मैं सक्षम नहीं
पर यह आपका सत्य है
आपके कल्पना का सत्य है
और यह उतना ही सच्चा है
जितना बहता हुआ पानी
या चहचहाती गौरैयां
या उस मां के लिए
अपने बेटे का सबसे सुंदर होना
किताबे आपको नजरिया देती है
अपने अलावा किसी और के पक्ष से
दुनिया देखने का जरिया देती है
किताबे आपके के लिए निर्णय नही लेती
वह आपको पर्वत की चोटी पर ले आती है
छलांग लगानी है, या नही ?
यह तय करने की छूट देती है
सहितय समाज का महत्त्वपूर्ण स्तम्भ है
यह पढ़ते हुए लोग मुझे हिप्पोक्रेट कहेंगे
पर यह मेरा सत्य है
किसी का अभाव भी आपको
एक सत्य से रूबरू करता है
न मैने पहला कारण बताया
न आखरी कारण बताया
केवल एक सत्य का विवरण किया
जो सत्य है भी और नही
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