सुकून


एक रोज मैं यूहीं रुक गया
स्टेशन की एक कुर्सी पर बैठ गया
कई ट्रेनें आती कई ट्रेनें जाती
इस आवा जाही के बीच का समय
यह मेरे लिए सुकून था

मध्यम गति से हवा आती
मेरे बालों से बातें कर
चुप चाप चली जाती
इस हवा के आने जाने के बीच का समय
यह मेरे लिए सुकून था

भयंकर गर्मी में जुलस्ते हुए
एकाएक बैठने की जगह मिली
ठंडे पानी की बोतल खोली
इक झटके में गटक गए सारा पानी
उस बोतल के खोलने 
और बंद करने के बीच का समय
यह मेरे लिए सुकून था

सामने की प्लेटफार्म पर नज़र जाती
मेरे जैसे ही एक राही को पाती
मुंह लटकाए हुए इस ज़माने में
एक मुस्कुराहट से रूबरू कराती
उस अनजान व्यक्ति की मुस्कुराहट
यह मेरे लिए सुकून था

इंतजार खत्म हो रहा था
जिस की राह देख रहे थे
अब वह व्यक्ति दिख रहा था
उस इंतजार का कविता मैं बदलना 
यह इंतजार मेरा सुकून था

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