भीड़
सोच कर की अलग हूं मैं
भीड़ की नजर से देखा
भीड़ का हिस्सा हूं मैं
में बर्बाद कर समय को
अच्छे दिन खोज रहा हूं
रोज मर मर के जीता हूं
और जिंदगी तलाश रहा हूं
अच्छे बुरे का है भेद मुझे
अपनी अवस्था का है खेद मुझे
ज्ञात है , हुई नही है देर मुझे
पर खड़ा हूं शुरुआत पर मैं
जैसे किसी ने रोका है मुझे
जो आता है वो करना नही
कुछ अलग का टुंटुना बजाना है
मन के विचार तो है बुलंद
बस खुद को आईना दिखाना है
अपने सोच को आकार दू
स्वाभिमान को पुकार दू
श्रम के बीज बो रहा
जो वृक्ष बन रहे अभी
क्या काट दे कोई उसे
कोई परशु इतना पैना नही
भीड़ में मैं चल रहा
भीड़ से हूं लड़ रहा
तोड़ के इन बंधनों को
आज आगे बढ़ रहा
Going ahead with all odds👏
ReplyDeletenothing can Stop us we're all the up🙏🙌
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