समाज का सत्य


मेरी समाज से एक तकरार है
और सब से एक दरख्वास्त है
हां है स्त्री पुरुष एक बराबर 
पर तकलीफ उनकी अलग है
यदी आपको इनकी समझ नही 
तो पूछो किसी से, पढ़ो कहीं
ऐलान न करो की इनका कोई महत्त्व नहीं

यह एक मॉडर्न दुनिया है
आजकल काम आपके 
निजी जीवन पर प्रधानता लेता है
पर बदले में यह निर्णय आपको क्या देता है
तनाव, चिंता, बेचैनी और घर के ताने

आप वोरकोहोली हो पर आप इंसान भी हो
आप एक मां हो, एंप्लॉई हो 
घृहणी हो पर एक इंसान भी हो
आधी जिंदगी काम करने में निकली
और उसके पहले की उसी काम को सीखने में

खुद को समय देने का मौका आया 
तो जिम्मेदारियां गिनाई जाती है
प्रोजेक्ट और उसके डीडलाइन 
याद दिलाई जाते है
पर इंसान जो धीरे धीरे मर रहा है
उसे "एम्प्लॉय ऑफ द मंथ" कहके 
दफना दिया जाता है

पुरुष अपने काम में जिम्मेदार
और कुटुम्ब के प्रति कम जिम्मेदार होते है
जो चलता है,उनके नजरिए से
चुकीं औरते घर ऑफिस दोनो चला रही है
उन्हें कही भी गैर जिम्मेदार
होने की स्वतंत्रता नही 
नुन्यतम काम कर आप एहसान जताते हो
जबकि दोनो मेज पर एक समान हिस्सा लाते हो

लोग कहते  है यह उनका काम है 
घर चलाना तो मामूली बात है
जुबान चलते है दिमाग नही
हम में ही सारी कमियां है कहीं

जीवन को स्वर्ग नही
जीवन ही रहने दो ना
क्यों चाहते हो हमे अपनी परिभाषा में ढालना 
हम जैसे भी है हम ही रहने दो ना
मैं अगर सबको हूं समझती 
मुझे समझ पाए न कोई क्यों?

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