भावनाओं में भावशुन्यता
मुझे घूमते हुए काटें को देखकर बड़ा आश्चर्य होता है, मैं वहीं खड़ा रहता उसे देखते हुए और दिन का दोपहर, दोपहर से शाम और शाम रात मैं बदल जाती है।
मैं सोचता की यार ये घड़ी के काटें और धरती के बीच का यह रिश्ता कितना सटीक है, सब कुछ अपने निर्धारित वक्त पर होता है, आप चाहें या ना चाहें , यह एक पहिया है जो अनंत काल से ऐसे ही घूम रहा है
आपने कभी सुबह सुबह उठ कर, अपने गांव के घर की चौखट पर बैठ,गाय बैल इत्यादि पशुओं को जाते देखा है, कैसे उन्हें पता होता है की उन्हें कहा जाना है और दूसरी बात की कहा़ तक जाना है यह पता होता है। उन में से कुछ रहते है जोह हमेशा भटक जाते है और मैं शायद उनमें से एक हूं।
मैं हमेशा भटक जाता है, अपने खयालों में ,विचारो में या अपनी मांघड़त कहानियों और झगड़ो में बीतूता रहता हूं
वास्तविकता या हकीकत मुझे थोड़ी डरावनी लगती है, भयानक नही लगती बस मुझे लग रहा है की मैं इस पथ पर अपनी गति से नही चल पा रहा हूं, पीछे आते हुए झुंड को देख मैं अपने कदम तेज़ी से बढ़ता हूं और मुझे इस बात का आभास भी हो रहा है की यह मेरी गति नही है।
मुझे उन तेज़ी से बढ़ रहे कदमों के नीचे कुचले जाने का डर है शायद, या शायद कोई वहां दूर मेरा इंतजार कर रहा है, जिसे मैं और इंतजार नही करना चाहता हूं, पर इन सब में मैं कहा हूं, मुझे किस रास्ते जाना है , किस गली मुड़ना, कितना तेज चलाना उसका क्या?
क्यों कोई मुझे रुकने के लिए नही कह रहा, क्यों कोई यह नहीं कहता की , " देखो, तुम उस रास्ते जा रहे हो पर ये दो तीन रास्ते और भी है जल्दबाजी मात करो", कोई क्यों नही कहता की तुम जहा हो यदि यहीं थोड़ी देर और रुक जाओगे तो कोई दिक्कत नही है।
मैं इस बात से भी डरता हूं की अगर कोई ऐसा कहता है मुझे तो मैं आपने आसुओं को नही रोक पाऊंगा, ये नही की मैं चाह कर रो रहा हूं,पर मेरे आखों के लगातार गिरते हूं अश्रु से भी में अंजान हूं।
अब ये विचित्र सी भावशुन्यता है जबकि मैं तरह तरह की भावनाओं में डूबा हूं।
इन सब सोच विचार के चलते ,मेरी आंखों पर धूप गिरती है, मैं अपने खयालों से अपनी वास्तविक दुनिया में आता हूं और चुप चाप उठ कर भीतर चला जाता हूं।
ये मेरी तरह तरह की भावनाओं की कश्मकश है।
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