मत पूछो


मुझे पूछो मत की
किन यादों को थाम कर बैठा हूं
इस तरह लिख रहा हूं मैं नज़्म
लगता है सारा दिन
हातो में कलम लिए बैठा हूं
मत पूछो मुझे की मेरे स्याही का रंग लाल क्यों है
मत पूछो मुझे की मेरी कलाइयों पर 
ये किस आघात के निशान है

मत पूछो मुझे 
मेरे बीते हुए कल का
न हाल ए दिल का
न मेरे चाल चलन का
मैं चल रहा हूं आगे 
पीछे देख देख कर
मैं गिर रहा हूं बार बार
कुछ जानकर कुछ संभाल कर

मत पूछो मुझे मेरे आने वाले कल का
जो बीत गया उस हर एक पल का
मत पूछो की मैंने कितने कतल किए है
कुछ सपनो के कुछ इरादो के
कुछ खुद से और कुछ अपनो से किए वादों के

मत पूछो मुझे की अब आगे क्या?
ये तो कर लिया, इसके बाद क्या?
घर तो ले लिया अब गाड़ी का क्या?
नौकरी तो करली अब इंक्रीमेंट का क्या?

ये सवाल पूछने वाले क्या कभी 
जवाब भी देंगे इन सवालों के
सच कहूं तो दिक्कत सवालों से भी नही है
पूछने वाले के लहजे से है

इन सवालों में आत्मविश्वास झलकता है
जैसे की मेहनत केवल वे करते है
हमारे जिंदगी का क्या , वो तो तुक्के पर चल रही है
इन सवालों में मेरी विफलता का आत्मविश्वास झलकता है
जैसे उन्होंने तो अपना निर्णय पहले ही कर लिया है

मैं खारीच करता हूं इन सवालों को विचारों को
इन्हे पेश करने वाले उन सलकहकारों को
बस उसी सवाल का महत्त्व है मुझे
जो मेरा अंतर्मन मुझ से करे







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