यादों की हवा......


आज हवा ने अचानक खिड़की पर दस्तक दी
जैसे ही मैंने केवांड खोले
मुझ से लिपट कर मुझे गले लगा लिया
मैने मुंह टेढ़ा कर कह दिया
मिल गया आज तुम्हे समय
मानो जैसे उस हवा में मेरी महबूबा की महक हो
और मैं उससे नाराजगी जता रहा हूं
पर मैं तो बेवकूफ हूं, हवा से बातें कर रहा हूं

क्या याद है तुम्हे वो प्यारी सुबह
आलस, अंगड़ाइयां और तुम्हारे सफेद रेशम के कपड़े
हवा तुम्हारी जुल्फों को छेड़ती
खिड़की पर लगे परदे से खेलती
पता है? आज यह वही हवा है
जो मुझे जलाने आई है
मेरे भीतर लगे आग को हवा दे रही है
यह वही हवा है जो हमारे चाय को ठंडा करती 
जब हम एक टक एक दूसरे को देखते 

मैं तुम्हारे आंखों पर गिरते हुए बालों को,
अपने उंगलियों से हटता, तुम मध्यम सा मुस्कुराती
तुम्हारी आंखों की चमक मेरा दिन रोशन कर जाती
वह चादर, तुम, तुम्हारी मुस्कान,
हवा और चाय की प्याली या मेरा जीवन था
और एक हद तक मेरे मन में यही जीवन है
पर हमेशा बस यह हवा ही लौट कर आती है

हर सुबह याद करता हूं आज भी
मेरे सिरहाने तुम्हारी गोद का होना
तुम्हारे आंचल का मेरे चेहरे पर गिरना
वो एक सौंधी सी खुशबू तुम्हारे देह की
जिस पर केवल मेरा हक था
और थोड़ा सा उस हवा का,
जो आज फिर मुझसे मिलने आई है

आज मैं हूं,ये हवा है, तुम्हारी महक
तुम्हारी यादें और प्याले में ठंडी पड़ी चाय



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