आंसू


किसी को रोता देख कर मुझे बहुत दुख होता है
उन आसुओं का कारण क्या हो सकता है
कोई रास्ते पर रो रहा, कोई दफ्तर में
कोई छिप कर रो रहा,कोई ऊंचे मीनारों में 
कोई मंदिर में रो रहा,कोई अस्पतालों में।
रुक कर सोचने लगता हूं मैं अक्सर,
उन आसुओं के गुन्हेगार कौन हो सकते है
क्या कारण हो सकता है की
राह चलता इंसान अब,
अपने आसुओं को नही छिपाता
क्यों किसी का कंधा इतना झुक जाता है
की अपने बाजुओं का बोझ नहीं उठा पता
बादल भी नही बरसते उसे छिपाने के लिए
सारा जग अब तो बैरी होगया है।
दुनिया तो तब ही पराई हो गई थी,
जब अपनो ने पराया करदिया था
न गिला है मुझे बरसात से
न शिकवा है मेरे हालत है
बस देख कर रोता हूं अपने हाथों को
क्यों चुराया मुझे मेरे जज़्बातों से
एक आसूं मजबूरी का था
एक आसूं नाकामयाबी का,
एक आसूं बदनसीबी का था
एक आसू शिकस्त का,
उन आंखों की अब क्या दशा थी
जिन्हे सब धुंधला दिख रहा था,
वे भी अपने किस्मत पर रो रहे थे

मैं अपने जीवन के किस्सों का स्मरण करने लगा
उन अश्कों को याद किया जो मेरे समक्ष बहे
उन गलतियों को याद किया 
जो उनके गुन्हेगार थे
इस कश्मकश के दलदल में 
मैं धंसता चला जा रहा था
एक आसू मेरे भी आंखों से बह गया
जब ज्ञात हूं मुझे की
कई अश्कों का इल्ज़ाम मुझ पर भी है

Comments

Popular Posts