ठहराव


इन बड़े शहरों में जिंदगी को,
जिंदगी न कह कर जल्दबाजी कहना चाहिए
बंबई की भाषा में इसे 'घाई' कहते है
और यही घाई या जल्दबाजी आपकी जीवनशैली बन जाती है

उठना, नहाना, तैयार होना, सफर करना
यहां तक की खाना और बात करना भी 
मुंबई की तेज लोकल की तरह है
जो अपने पूर्वनिर्धारित समय और स्थान की कैदी है

बहुत कुछ छूट जाता है 
आप के पास मुड़ने की,
कुछ कदम पीछे लेने की विलासिता नही है
जिंदगी उस नन्हे शिशु की तरह होती है
जो रेंगते हुए आगे बढ़ रहा है और 
साथ सारे खिलोने समेटकर ले जाना चाहता है
पर हाथ कुछ भी नही आता
कुछ पाने के लिए कुछ खोने का सिलसिला कायम सा लग रहा है

ठहराव हमारे जिंदगी से धीरे धीरे 
कदम दर कदम दूर जा रहा है
बिल्कुल उस रिश्तेदार की तरह 
जिससे पिछली बार आप अपने छटे बर्थडे पार्टी में मिले थे
जिसकी कोई स्मृति नही है

ठहराव हमारे चरित्र को प्रबल करता है
हमारे अस्तित्व को मजबूत करता है
हमारी मौजूदगी का ज्ञात कराता है
हमारी बातों में वजन और
जिंदगी में स्थिरता लता है ठहराव

आप इसे रुकावट मत समझना 
यह आपके लिए एक 'ब्रेथिंग स्पेस' की तरह है
यह आपको सोचने समझने का मौका देता है  
जो चीज आपसे छूट रही थी उसे हासिल करने की संधि देता है

जल्दबाजी हमसे हमारी सद्भावना और इंसानियत चुरा कर
एक कम इंसान या कहूं तो 'इंसेन' बना रही है
और वहीं,ठहराव इन सब के चलते असल मायने में इंसान बनाता है
वह इंसान जो कुछ पल रुककर हस्ता है, रोता है
जो ट्रेन के खातिर,टॉम क्रूज की भांति सीढियां नही लांघता है
उसे अब ज्ञात है की वह थोड़ी देर रुक सकता है थोड़ा ठहर सकता है

Comments

  1. Sir your poems are becoming ekdum serious now a days ekdum bhari🤭

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