आईने के दो पहलू


कभी कभी चुप रहना मुझे पसंद है
पर अक्सर ये खामोशी काटने दौड़ती है
मेरा मन मुझे मौन नही रहने देता
मेरा बोलना, मेरा ठहाके लगाना
मेरे ही मन के लिए एक तरह का आश्वासन है
की जिंदगी इतनी कठिन नही,
हर दिन पहन ने वाले इन कमीज़ों की
कुछ जेबों में थोड़ी थोड़ी खुशी छिपी हुई है
जो मुझे खामोश रहने की इजाजत नहीं देती
मैं बहुत स्वार्थी हूं,अपने आसुओं को भी
केवल अपनी वेदना के लिए बचा के रखता हूं
यह बात मुझे कभी कभी पीड़ा देती है
क्या यह मुझे एक बुरा इंसान बनाता है
या फिर एक व्यक्ति जिसे लोग कम अच्छा मानते है
मैं अपने मन को समझाता हूं की,
मुझे लोग क्या कहेंगे इसकी चिंता नही 
पर यह बात किसे समझा रहा हूं
खुद को या किसी और को, क्या पता?
यह हंसी का मुखौटा मैंने आईने पर कभी नही देखा
शीशे के उसपर वाला व्यक्ति मुझे एक टक घूरता है
गहरी थकी अकेली आंखें जो बेबस है 
जो शायद ही कभी मुस्कुराया होगा
शायद वो आईने के इसपर आने का इच्छुक है
संभवता, वह भी आईने के इस पार वाले 
मीत की तरह मिलनसार और हसमुख बन जाए
और इस पार वाला,आईने के दूसरे तरफ के अभिशाप का बंदी
हालाकि की यह सब कुछ कायम के लिए नही होगा
काया और नियत कभी भी पलट सकते है 
अच्छा या बुरा, सुंदर या कुरूप यह उसे बदलने वाले पर निर्भर करता है
लोग आपको उतना ही जान पाते है जितना वे पढ़ पाते है
क्योंकि आपके मस्तिष्क की सीमा उतनी ही 
जितना आपकी आंखें देख पाती है
आईने के इसपर और आईने की उसपार वाले मीतों में
इन्हीं विचारों की कुश्ती चलती रहती है
क्यों की यह एक नियम है,जितना आप दोगे उतना आप को सूत की तरह नही मिलेगा 
पर जीवन के इस पथ पर कदम कदम पर छोटे छोटे हिस्सों में ब्याज की तरह मिलता रहेगा 
अफसोस इस बात का है कभी कभी यह होने मैं काफी देर हो जाती है
इतनी देर की जीवन का लेन देन का कटा अब टस से मस नहीं होता

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