ज़ाया


मैं कह न पाऊं बातें मन की
सुन न चाहूं अपने दिल की
अकेला हूं, हूं जी रहा मैं
किस से कहता बातें अपनी
क्या है कोई जो सुन रहा है
अब बरसात न लगे सुहाना
है उदासी का ये एक बहाना
जब खुश नहीं तुम हो खुसदसे
क्या खाक भाएगा तुमको ये ज़माना 
है साथ अब मुझे, बस मेरे इन अशको का
जो हाथ पकड़े थे, अब छोड़ हाथ निकल लिए
ये मेरी आशिकी,तन्हाई मेरी माशुका
मैं बैठा हूं वहां,जहा मिले थे हम पहली बार
है सब वैसा ही बस बदला है तेरा मिजाज़
ये कैसा मर्ज है न मिल रहा कोई इलाज
मैं जानता हूं किस रास्ते में जा रहा 
जो जुड़ते जा रहे है उनको मेरा शुक्रियाँ
है बाकी बोलते बस करना उनको कुछ नही
मुड़ के देखता तो सारे है खड़े वहीं 
हूं लिख रहा मैं और कलम मेरी न रुक रही
है स्याही अब भी गीली उन पन्नों की,
जिनमें था जिक्र तेरा, लिखी थी कहानी तेरी
पर अब न मोह है मुझे तेरी इस माया की
छोड़ा मैने उन गली को ,जवानी जहा मैने जाया की

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