सिरहाने


मैं सिरहाने सपने रखता हूं
उन्हें कभी कभी आसुओं से सींचता हूं
कुछ डूब जाते, कुछ बह जाते
कुछ मुक्कदर बन, माथे की लकीर बन जाते
उस तकिए सा अपना कोई नही
उस चादर सा अपना कोई नही
एक सिर पर हाथ सैलाता है
दूसरा बाहों में भर लेता है
उम्मीद वही बल्ब ज़ीरो वॉट की
जैसे डूबते को तिनके का सहारा है

मैं सिरहाने इश्क रखता हूं
उसे भी सींचा आसूंओं से मैंने
कुछ कभी न थे मेरे, 
कुछ सपने थे और
कुछ के,मुक्कमल होने की आस थी
कुछ की यादें बहुत खास थी
इन सब से मैं न मिला कभी
बस तकिए से मेरी मिलती थी
ये वृक्ष हसीन मुलाकातों का
कलियां जिसकी केवल सपनो में खिलती थी
न इत्तेफ़ाक था दिमाग से,न दिल से था बैर
वो क्या होता अपना जो शुरू से था गैर

मैं सिरहाने कागज़ रखता हूं
उसे आसूंओं से सींचता हूं
कुछ भीग जाते, कुछ फट जाते 
कुछ उपन्यास कुछ कविता में बदल जाते
ये वर्क कोरा न सोने का न चांदी का
ये खाल मेरे वृक्ष सपनो की
जिसकी कलियों के फूल
बढाता है शोभा तेरे बालों की

मेरे सिरहाने है दूसरा मैं
जो न कल का है ,न आज का
वो कायल है जाड़ों का
पतझड़ का बरसात का
वो कभी कभी मुझ से जगह बदलता है
कभी कभी उसके आसूं मेरा दिल सींचते है
ये एक अदृश्य सहारा है मेरा
मेरे सिरहाने कुछ टूटे सपनो की चिता भी है
जिसकी तपन मुझे इशारा कर रही है
उन्हें फिर जिंदा करने को,
एक बार फिर कोशिश करने को
भले नतीजा हो वही पुराना 
मुझे मेरे सिरहाने बसी छोटी दुनिया का सहारा




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