बहस


बहस किया है आपने कभी? हां किया तो होगा ही, कभी अपनो से कभी कुछ अंजान लोगो से।
कितनी दफा आपने कुछ ऐसा कहा होगा आक्रोश में आकर, जिसे वापस लेना अब आपके स्वाभिमान को ठेस पहुंचा सकता है।
आपके दिल में जल रही वह महीन सी कुटिल आग में आपके गुस्से ने घी का काम किया है और आपकी जबान आपके वश में न होकर अपने आप उस कुटिल आग में जुलस्ती है जिसके फल स्वरूप आपके मुख से निकला हर शब्द सुनने वाले के देह को ही नही उसकी आत्मा को भी जला देती है।
क्या आपके अहम की अहमियत इतनी है की,अपने कद के सामने आपको हर चीज छोटी दिखती है
आपके दिलों के बीच की दूरी इतनी विशाल हो जती है की बात करने के लिए आप के पास चीख ने के अलावा और कोई उपाय नहीं है।
क्या आपने कभी खुदसे आंख मिलाने की कोशिश की है किसी से कटु शब्द कहने के बाद?
अपनी गलतियों पे विमर्श करने के बदले आप क्या करना पसंद करते हो? बहस
सबसे सरल उपाय या तर्क है अपनी कमियों को अपनी गलतियों को छिपाना 
पर जो आसू बहे है,उनका हिसाब तो कहीं न कहीं और कभी न कभी तो होगा ही।
इसका केवल मूल दाम वसूला जाएगा या ब्याज का हिसाब भी लिया जाएगा यह तो केवल वक्त बता सकता है
क्रुरूता को अपनी प्रवृत्ती बनाना एक बुजदिल का काम है
अपने गुस्से, अपनी ईर्ष्या, अपने भय का सामना यदि नही कर सकते, तो आप दूसरे की खामियों को अपनी ढाल बना कर उनसे नही लड़ सकते

अपने शब्दों से किसी के चरित्र पर स्वाभिमान पर घात करने से कायर और तुच्छ हरकत और कोई नही

इन वाद विवादों से ऊपर उठो, बहस नही पहल करो।

Comments

Popular Posts