डॉक्टर


कमरे में बैठा एक लड़का अंजान
जिसका सपना था डॉक्टर बनना
और बचानी थी जान।
था आसान नहीं इस सपने का सफर
थी मंजिल भी हसीन 
पर कुछ पल लिए बस 
चुकीं सपने और हकीकत के बीच का 
फर्क थी जिंदगी
आज 6 साल हुए, कई त्योहार छूटे
कई अपने रूठे, कितनों के हौसले टूटे
पर आखिरकार वह सफेद कोट 
अब अंग का हिस्सा बन चुका था
उस लड़के के नाम के आगे,डॉक्टर लग चुका था
जब पोस्टिंग हुई तो ,खुशी से न समाया
पर समय के चलते सारी अपेक्षाओं ने दम तोड़ा
और असल जिंदगी से रूबरू कराया
ये ढोंग है सबका,बस अपने मतलब की बात है
गर आप भगवान जितने सक्षम नहीं
फिर आप पर बरसते हाथ और लात है
उनसे कहां देर होती है अस्पताल तक आने में
वो थोड़ी जाते है बाबा हकीम के ठिकाने में
जब खून की हो  परिजन को जरूरत
तब धमनी इनकी सुख जाती है
और कभी इसके चलते उसकी सांसे रुक जाए
तो जिनका रिश्ता नही वो भी भाई बाप बन कर
हाथ साफ करने आ जाते है
यहां लोग भगवान भी बनाते है
उसी भगवान की बली भी चढ़ाते है
कहते है औरतों की इज्जत करते है
और महिला डॉक्टर को वैश्य बुलाते है
सब कुछ सह कर सिर नीचे रख कर
वह लड़का फिर उसी कमरे मैं चला गया
न एक मलाल उस सपने का , न एक शिकन माथे पर
हाथों को बांध होठों को सीतें है
बस दिल को पत्थर कर हम अपनी जिंदगी जीते है

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